Wednesday 1 February 2017

धर्म-स्खलन और श्री कल्कि|

बदलाव समय की आवश्यकता है। रुका हुआ पानी भी समय के साथ पीने योग्य नहीं रहता। ये बात प्रकृति की हर रचना पर समान रूप से लागू होती है। परन्तु बदलाव बेहतरी के लिए हो तभी सार्थक है|

आज के परिवेश में धर्म की परिभाषा पूरी तरह बदल चुकी है| भारत के सांस्कृतिक इतिहास के अनुसार केवल दो पक्ष थे, धर्म और अधर्म| और सभी जीवों का विभाजन उनके कर्मों के अनुसार इन दोनों में एक पक्ष के अंतर्गत होता था, धार्मिक या अधार्मिक| वर्तमान में तो इच्छा अनुसार एक नया पंथ बना दिया जाता है और उसे धर्म की उपाधि दे दी जाती है| धर्म में समय के साथ हुई इस हानि को 'धर्मस्खलन' कहना अनुपयुक्त नहीं होगा|

जबकि आवश्यकता इस बात की है की धर्म के स्वरूप को वर्तमान की आवश्यकताओं के अनुसार सकारात्मक रूप में संशोधित किया जाये| ताकि वे जो अधर्म-पंथ को धर्म का नाम देकर उसका अनुगमन किये जा रहे है वो यथार्थ धर्म को स्वीकार कर सके|

परन्तु ऐसा कर पाने में एक बड़ी अड़चन है| मनुष्य प्रकृति से ही अनुयायी रहा है| अनुयायी रहा है बुद्धि, बल और अलौकिकता से परिपूर्ण व्यक्तितवों का| चाहे फिर श्री राम हो या श्री कृष्ण, येही व्यक्तित्व ही मनुष्य को धर्म का अनुसरण करने को प्रभावित करते आये है| वर्तमान के अनुसार धर्म की सही परिभाषा समझाने और उसे अनुकर्णीय बनाने के लिए भी ऐसे नेतृत्व की आवशयकता है| जो अधर्म को परास्त कर धर्म-स्खलन को रोक सके|
संभव है वो व्यक्तित्व हमारे सनातन पुराणों में वर्णित 'श्री कल्कि' ही हों|

Saturday 19 March 2016

धर्मयुद्ध- कल और आज|

यदि हम अपने इतिहास को पढें तो ये देखते है की सनातन धर्म में युद्ध के नियम बहुत ही विस्तृत रूप में वर्णित हैं|
यदि महाभारत को ही ले लें, तो युद्ध से पहले उसके सभी नियम निर्धारित थे| अतिरथी से अतिरथी लडेगा, महारथी से महारथी, पैदल से पैदल लडेगा| इसी प्रकार अस्त्र शस्त्रों के बारे में भी साफ था की धनुर्विद धनुर्विद से भिड़ेगा, गदाधारी केवल गदाधारी से लड़ सकेगा| सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद कोई लड़ाई नहीं होगी| ये सभी नियम युद्ध को भी धर्म में बांध के रखते थे और इसीलिए ऐसे युद्ध में मरने वाले योद्धा वीरगति को प्राप्त करते थे, फिर चाहे वो जीते हुए पक्ष के हो या हारे हुए|
आज के सन्दर्भ में यदि देखा जाये, तो युद्ध तो रह गया है पर धर्म गायब हो गया है| आज की लड़ाईयों में कोई भी यदि नियमो की आशा करे तो वो बेमानी है| और येही एक कारण है की लडाई झगड़ो में लोग सभी सीमायें लाँघ देते है फिर चाहे वो कानूनी हो या मानवता की हो| ये बात वैश्विक युद्धों और छोटी मोटी व्यक्तिगत लड़ाईयो, दोनों में एक सामान लागु है| एक व्यक्ति को 10 लोग मिलके मारते हैं, निहत्थे को हथियार से मारते हैं|
आज चूँकि धर्मयुद्ध की आशा रखना व्यर्थ है तो अच्छा ये होगा की समय के अनुरूप अपने को ढाल लिया जाए| शायद इस बदलते समय को भांप कर ही हमारे आदि-गुरुओं ने कलारी-पयत्तु, और गतका जैसी युद्ध कलाएं विकसित की| उन्हें पता था की आने वाले वक्त में एक-एक को दस-दस से लड़ना होगा और उसके लिए व्यक्तिगत सामर्थ्य जरूरी होगा| तो इस बदलते परिवेश में बहुत जरूरी है की हमारी आने वाली पीढियां स्वयं की और जरूरत पड़े तो औरों की भी रक्षा अकेले करने में सक्षम हो|
KALARIPAYATTU; GATKA; JUDO; KARATE; SAMBOWUSHU; KICKBOXING; TAEKWONDO; all these are not merely sports, these are today's versions of Dharmyudhha. Lets teach these to our coming generations and make them able.


Wednesday 9 March 2016

हेमू- भूला हुआ सबक

‘हेमू’ (हेमचन्द्र विक्रमादित्य) भारतीय इतिहास के आखिरी हिन्दू सम्राट थे| उनको आधुनिक इतिहासकारों ने ‘मध्यकालीन भारत का नेपोलियन’ की उपाधि से भी अलंकृत किया है| क्यों न हो| 16वी शताब्दी में हेमू द्वारा जीती हुई 22 लडाईयां इस बात का प्रमाण थी|
हेमू के प्रारंभीक जीवन के बारे में इतिहासकारों की आपस में नहीं बनती| कोई उन्हें रेवाडी में जन्मित कहता है कोई उन्हें अलवर में जन्मित कहता है| कोई ब्राह्मण बताता है और कोई वैश्य| परन्तु इनमे से सच जो भी हो, कुछ बाते ध्यान देने योग्य है| जन्म से ब्राह्मण/वैश्य होते हुए भी हेमू कर्म से क्षत्रिय हुए और सम्राट बने| जो ये प्रमाणित करता है की उस समय तक भी भारतीय समाज में ये समझ बची हुई थी की वर्ण-व्यवस्था ‘कर्म-आधारित’ है नाकि ‘जन्म-आधारित’| इसी वर्ण व्यवस्था को आगे चल कर अंग्रेजो ने आकर पूरी तरह ध्वस्त कर दिया और इसकी जगह जाती-व्यवस्था को स्थापित कर दिया|
उनकी सेना में हिन्दू सरदारों के साथ अफगान सरदारों का होना भी कुछ हद तक ये साबित करता है की उस वक्त के हिन्दू-अफगानी सभी अपने को सांस्कृतिक जोड़ से हिंदुस्थानी मानते थे और मुगलों को बाहरी आक्रमणकारी|
एक और बात ध्यान देने वाली है| जब पानीपत की दूसरी लड़ाई में हेमू अकबर से हार गए और 350 वर्षों बाद स्थापित हुआ हिन्दू साम्राज्य सिर्फ 1 महीने में पराजित हो गया, उसके बाद हेमू के सभी साथियों और उन सब के परिवार वालो को इस तरह मारा गया जो नृशंस था| उनके मुंड काट के मुंड-मीनारे बनायीं गयी जोकि अगले 60 वर्षों तक ज्यों की त्यों रही| ताकि हिन्दुओं में दहशत बना के राखी जा सके ताकि फिर कोई हेमू न उठे| ये ‘अकबर महान’ के समय की बाते और कर्म हैं|
देखा जाए तो ये बात मध्ययुग से शुरू हुए सभी बाहरी आक्रमणों में सामान थी| उन सभी में धर्म के नेतृत्व का इसी पाशविक तरीके से अंत किया गया| और चूँकि हिन्दू अत्यंत सहिष्णु होते है, परिणाम ये हुआ की सदियों लग जाती थी नए नेतृत्व बनने में|

उपरोक्त हमें ये शिक्षा देता है की यदि धर्म का नेतृत्व करने के लिए कोई उठता है तो हमें सर्वस्व क्षमता से उसकी रक्षा करनी चाहिए और उसे सहेजना चाहिए| क्यूंकि फिर न जाने कितनी सदियों में कोई नया नायक मिले| 

Thursday 25 February 2016

महाभारत- एक सीख

कुछ लोग ये मानते हैं की महाभारत एक मिथक है| मैं नहीं मानता| मैं इसे इतिहास मानता हूँ| भारत का इतिहास|
और इतिहास हमें बहुत कुछ सिखाता है| हमें अपने इतिहास से सीख लेनी भी चाहिए| क्यूंकि उससे क्या गलत है, और क्या नहीं करना है उसका ज्ञान मिलता है| महाभारत ऐसी शिक्षाओं का सागर है| भगवद गीतोपदेश इनमे सबसे बड़ी शिक्षा है|
परन्तु आज मैं भगवद गीता की बात नहीं कर रहा| आज जो मैंने सिखा है महाभारत से वो लिख रहा हूँ| वो है- "योग्य ही सर्वोच्च हो"
महाभारत में जिस क्षण महाराज शान्तनु से सत्यवती के विवाह के लिए देवव्रत ने अपना हिस्सा सिंहासन से छोड़ कर, सत्यवती के पुत्रो को ही राजा होने की भीष्म प्रतिज्ञा की, उसी क्षण युद्ध निश्चित हो गया था| क्यूंकि उसी क्षण भारत में सर्वोच्चता योग्य की न होकर जन्म से निर्धारित हो गयी| 
सत्यवती के पुत्र चाहे योग्य हो न हो, भीष्म ने ये सुनिश्चित करने का वचन दिया की राजा वही होंगे, बाद में इसकी ग्लानी सत्यवती को भी हुई पर देर हो चुकी थी| और इसी के परिणामों के कारण से महाभारत युद्ध भी हुआ| 
आज के परिपेक्ष में देखा जाए तो राजनीती की सभी बुराइयो की जड़ में भी ये ही है| लोग राजनीती को धर्म न मान कर एक कर्म (पेशा) मानते है| और योग्य को बढ़ावा न देकर अपनी संतानों को बढ़ावा दिया जाता है फिर चाहे वो योग्य हो या अयोग्य| अब यदि अयोग्य को सर्वोच्च बनाया जाएगा तो वो वहां बना रहने के लिए अधर्म करेगा ही| 

Moral- If you are looking for creating something long term promote able and deserving rather than your descendants.  




Saturday 20 February 2016

भारत एक राष्ट्र

ये हमारा राष्ट्र जिसे मध्य एशियन्स के ‘स’ को ‘ह’ उच्चारित करने की वजह से हिन्दुस्थान भी कहा जाता है| इसे परंपरागत सीमओं ने कभी भी परिभाषित नहीं किया| जो लोग इसको विभिन्न छोटे छोटे देशो का एक समूह मानते हैं वे कुछ हद तक सही हैं| असल में मौर्य सम्राज्य के विघटन के बाद के मध्य युग का भारत 56 देशो का समूह था, ये कुछ सीरियस इतिहासकार भी चिन्हित करते है (Studies in the Geography of Ancient andMedieval India- D.C. Sircar)| पर वो सभी देश मिल कर इस राष्ट्र को पूर्ण करते थे|

परन्तु न हिंदुस्थान के दुश्मन न वो इतिहासकार और न ही हमारा आम जनमानस इस सच को समझते है की भारत कभी भी सीमाओं का नाम रहा ही नहीं|
पश्चिम में अफगानस्थान से लेकर पूर्व में अंगकोर वाट तक और उत्तर में तिब्बत्त के पठार से लेकर दक्षिण में श्री लंका द्वीप तक कालांतर में भारत ही रहा है| इसकी निरंतरता विभिन्न समयों पर विभिन्न रही है परन्तु एक समानता जो हमेशा रही है वो है सनातन जीवन पद्यति (way of living) जो समय के साथ हिन्दू धर्म बन गयी| ये सनातन धर्म ही है जो भारत को राष्ट्र के रूप में चिन्हित करता आया है, कम से कम पिछले 7000 साल से|

पर समय की और आक्रान्ताओ की मार की वजह से य हिन्दुस्थान पूर्व और पश्चिम में गुजरात और अरुणाचल प्रदेश तक सिमट कर रह गया| पहले तक्षशिला और पुरुषपुर गए फिर सुंदरवन गए और अब कुछ हद तक हिमालय भी हिन्दुस्थान से अलग हो चुके है|

ध्यान देने की बात ये है की कोशिशे अभी भी जारी है की हिन्दुस्थान का नामो-निशान मिटाने की| प्रत्यक्ष रूप में उत्तर में कश्यप्मीर में चल रहा है प्रोग्राम दक्षिण में केरला में| पूर्व में असम में भी वही हाल हैं| परोक्ष रूप में पूरे भारत में चल रहा है (पढ़े Breaking India by Rajiv Malhotra)|

सवाल है किया क्या जाए इस पर?