बदलाव समय की आवश्यकता है। रुका हुआ पानी भी समय के साथ पीने योग्य नहीं रहता। ये बात प्रकृति की हर रचना पर समान रूप से लागू होती है। परन्तु बदलाव बेहतरी के लिए हो तभी सार्थक है|
आज के परिवेश में धर्म की परिभाषा पूरी तरह बदल चुकी है| भारत के सांस्कृतिक इतिहास के अनुसार केवल दो पक्ष थे, धर्म और अधर्म| और सभी जीवों का विभाजन उनके कर्मों के अनुसार इन दोनों में एक पक्ष के अंतर्गत होता था, धार्मिक या अधार्मिक| वर्तमान में तो इच्छा अनुसार एक नया पंथ बना दिया जाता है और उसे धर्म की उपाधि दे दी जाती है| धर्म में समय के साथ हुई इस हानि को 'धर्मस्खलन' कहना अनुपयुक्त नहीं होगा|
जबकि आवश्यकता इस बात की है की धर्म के स्वरूप को वर्तमान की आवश्यकताओं के अनुसार सकारात्मक रूप में संशोधित किया जाये| ताकि वे जो अधर्म-पंथ को धर्म का नाम देकर उसका अनुगमन किये जा रहे है वो यथार्थ धर्म को स्वीकार कर सके|
परन्तु ऐसा कर पाने में एक बड़ी अड़चन है| मनुष्य प्रकृति से ही अनुयायी रहा है| अनुयायी रहा है बुद्धि, बल और अलौकिकता से परिपूर्ण व्यक्तितवों का| चाहे फिर श्री राम हो या श्री कृष्ण, येही व्यक्तित्व ही मनुष्य को धर्म का अनुसरण करने को प्रभावित करते आये है| वर्तमान के अनुसार धर्म की सही परिभाषा समझाने और उसे अनुकर्णीय बनाने के लिए भी ऐसे नेतृत्व की आवशयकता है| जो अधर्म को परास्त कर धर्म-स्खलन को रोक सके|
संभव है वो व्यक्तित्व हमारे सनातन पुराणों में वर्णित 'श्री कल्कि' ही हों|
आज के परिवेश में धर्म की परिभाषा पूरी तरह बदल चुकी है| भारत के सांस्कृतिक इतिहास के अनुसार केवल दो पक्ष थे, धर्म और अधर्म| और सभी जीवों का विभाजन उनके कर्मों के अनुसार इन दोनों में एक पक्ष के अंतर्गत होता था, धार्मिक या अधार्मिक| वर्तमान में तो इच्छा अनुसार एक नया पंथ बना दिया जाता है और उसे धर्म की उपाधि दे दी जाती है| धर्म में समय के साथ हुई इस हानि को 'धर्मस्खलन' कहना अनुपयुक्त नहीं होगा|
जबकि आवश्यकता इस बात की है की धर्म के स्वरूप को वर्तमान की आवश्यकताओं के अनुसार सकारात्मक रूप में संशोधित किया जाये| ताकि वे जो अधर्म-पंथ को धर्म का नाम देकर उसका अनुगमन किये जा रहे है वो यथार्थ धर्म को स्वीकार कर सके|
परन्तु ऐसा कर पाने में एक बड़ी अड़चन है| मनुष्य प्रकृति से ही अनुयायी रहा है| अनुयायी रहा है बुद्धि, बल और अलौकिकता से परिपूर्ण व्यक्तितवों का| चाहे फिर श्री राम हो या श्री कृष्ण, येही व्यक्तित्व ही मनुष्य को धर्म का अनुसरण करने को प्रभावित करते आये है| वर्तमान के अनुसार धर्म की सही परिभाषा समझाने और उसे अनुकर्णीय बनाने के लिए भी ऐसे नेतृत्व की आवशयकता है| जो अधर्म को परास्त कर धर्म-स्खलन को रोक सके|
संभव है वो व्यक्तित्व हमारे सनातन पुराणों में वर्णित 'श्री कल्कि' ही हों|